कबि न होउँ नहिं चतुर कहावउँ। मति अनुरूप राम गुन गावउँ॥ कहँ रघुपति के चरित अपारा। कहँ मति मोरि निरत संसारा॥5॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 11.5|Caupāī 11.5
कबि न होउँ नहिं चतुर कहावउँ।
मति अनुरूप राम गुन गावउँ॥
कहँ रघुपति के चरित अपारा। कहँ मति मोरि निरत संसारा॥5॥
भावार्थ:-मैं न तो कवि हूँ, न चतुर कहलाता हूँ, अपनी बुद्धि के अनुसार श्री रामजी के गुण गाता हूँ। कहाँ तो श्री रघुनाथजी के अपार चरित्र, कहाँ संसार में आसक्त मेरी बुद्धि !॥5॥
kabi na hōuom nahiṃ catura kahāvauom. mati anurūpa rāma guna gāvauom..
kahaom raghupati kē carita apārā. kahaom mati mōri nirata saṃsārā..
I am no poet and have no pretensions to ingenuity; I sing the glories of Sri Rama according to my own lights, My intellect, which wallows in the world, is a poor match for the unlimited exploits of the Lord of Raghus.