करइ स्वामि हित सेवकु सोई। दूषन कोटि देइ किन कोई॥ अस बिचारि सुचि सेवक बोले। जे सपनेहुँ निज धरम न डोले॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
करइ स्वामि हित सेवकु सोई। दूषन कोटि देइ किन कोई॥
अस बिचारि सुचि सेवक बोले। जे सपनेहुँ निज धरम न डोले॥3॥
भावार्थ:
सेवक वही है, जो स्वामी का हित करे, चाहे कोई करोड़ों दोष क्यों न दे। भरतजी ने ऐसा विचारकर ऐसे विश्वासपात्र सेवकों को बुलाया, जो कभी स्वप्न में भी अपने धर्म से नहीं डिगे थे॥3॥
English :
IAST :
Meaning :