करि दंडवत भेंट धरि आगें। प्रभुहि बिलोकत अति अनुरागें॥ सहज सनेह बिबस रघुराई। पूँछी कुसल निकट बैठाई॥2॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
करि दंडवत भेंट धरि आगें। प्रभुहि बिलोकत अति अनुरागें॥
सहज सनेह बिबस रघुराई। पूँछी कुसल निकट बैठाई॥2॥
भावार्थ:
दण्डवत करके भेंट सामने रखकर वह अत्यन्त प्रेम से प्रभु को देखने लगा। श्री रघुनाथजी ने स्वाभाविक स्नेह के वश होकर उसे अपने पास बैठाकर कुशल पूछी॥2॥
English :
IAST :
Meaning :