करौं जाइ सोइ जतन बिचारी। जेहि प्रकार मोहि बरै कुमारी॥ जप तप कछु न होइ तेहि काला। हे बिधि मिलइ कवन बिधि बाला॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kand
करौं जाइ सोइ जतन बिचारी। जेहि प्रकार मोहि बरै कुमारी॥ जप तप कछु न होइ तेहि काला। हे बिधि मिलइ कवन बिधि बाला॥4॥
भावार्थ:
मैं जाकर सोच-विचारकर अब वही उपाय करूँ, जिससे यह कन्या मुझे ही वरे। इस समय जप-तप से तो कुछ हो नहीं सकता। हे विधाता! मुझे यह कन्या किस तरह मिलेगी?॥4॥
English :
IAST :
Meaning :