कहेहु नीक मोरेहूँ मन भावा। यह अनुचित नहिं नेवत पठावा॥ दच्छ सकल निज सुता बोलाईं। हमरें बयर तुम्हउ बिसराईं॥1॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई (61.1) | Caupāī (61.1)
कहेहु नीक मोरेहूँ मन भावा। यह अनुचित नहिं नेवत पठावा॥
दच्छ सकल निज सुता बोलाईं। हमरें बयर तुम्हउ बिसराईं॥1॥
भावार्थ:-शिवजी ने कहा- तुमने बात तो अच्छी कही, यह मेरे मन को भी पसंद आई पर उन्होंने न्योता नहीं भेजा, यह अनुचित है। दक्ष ने अपनी सब लड़कियों को बुलाया है, किन्तु हमारे बैर के कारण उन्होंने तुमको भी भुला दिया॥1॥
kahēhu nīka mōrēhuom mana bhāvā. yaha anucita nahiṃ nēvata paṭhāvā..
daccha sakala nija sutā bōlāī. hamarēṃ bayara tumhau bisarāī..
Lord Siva replied, Your suggestion is good and has commended itself to Me as well. But the anomaly is that Your father has sent no invitation to us. Daksha has invited all his other daughters; but because of the grudge he bears to us you too have been ignored.