काम क्रोध मद लोभ परायन। निर्दय कपटी कुटिल मलायन॥ बयरु अकारन सब काहू सों। जो कर हित अनहित ताहू सों॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
सप्तमः सोपानः | Descent 7th
श्री उत्तरकाण्ड | Shri Uttara Kanda
चौपाई :
काम क्रोध मद लोभ परायन। निर्दय कपटी कुटिल मलायन॥
बयरु अकारन सब काहू सों। जो कर हित अनहित ताहू सों॥3॥
भावार्थ:
वे काम, क्रोध, मद और लोभ के परायण तथा निर्दयी, कपटी, कुटिल और पापों के घर होते हैं। वे बिना ही कारण सब किसी से वैर किया करते हैं। जो भलाई करता है उसके साथ बुराई भी करते हैं॥3॥
IAST :
Meaning :