काशी स्तुति
काशी-स्तुति
राग भैरव
२२
सेइअ सहित सनेह देह भरि, कामधेनु कलि कासी।
समनि सोक-सन्ताप-पाप-रुज,सकल-सुमङ्गल-रासी ॥ १ ॥
मरजादा चहुँओर चरनबर,सेवत सुरपुर-बासी।
तीरथ सब सुभ अङ्ग रोम सिवलिङ्ग अमित अबिनासी ॥ २ ॥
अन्तराइन ऐन भल,थन फल, बच्छ बेद-बिस्वासी।
गलकम्बल बरुना बिभाति जनु,लूम लसति,सरिताऽसी ॥ ३ ॥
दण्डपानि भैरव बिषान, मलरुचि-खलगन-भयदा-सी।
लोलदिनेस त्रिलोचन लोचन,करनघण्ट घण्टा-सी ॥ ४ ॥
मनिकर्निका बदन-ससि सुन्दर,सुरसरि-सुख सुखमा-सी।
स्वारथ परमारथ परिपूरन,पञ्चकोसि महिमा-सी ॥ ५ ॥
बिस्वनाथ पालक कृपालुचित,लालति नित गिरिजा-सी।
सिद्धि सची, सारद पूजहिं मन जोगवति रहति रमा-सी ॥ ६ ॥
पञ्चाच्छरी प्रान,मुद माधव,गब्य सुपञ्चनदा-सी।
ब्रह्म-जीव-सम रामनाम जुग,आखर बिस्व बिकासी ॥ ७ ॥
चारितु चरति करम कुकरम करि,मरत जीवगन घासी।
लहत परमपद पय पावन ,जेहि चहत प्रपञ्च-उदासी ॥ ८ ॥
कहत पुरान रची केसव निज कर-करतूति कला-सी।
तुलसी बसि हरपुरी राम जपु,जो भयो चहै सुपासी ॥ ९ ॥