कोटि कोटि गिरि सिखर प्रहारा। करहिं भालु कपि एक एक बारा॥ मुर्यो न मनु तनु टर्यो न टार्यो। जिमि गज अर्क फलनि को मार्यो॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
षष्ठः सोपानः | Descent 6th
श्री लंकाकाण्ड | Shri Lanka Kand
चौपाई :
कोटि कोटि गिरि सिखर प्रहारा। करहिं भालु कपि एक एक बारा॥
मुर्यो न मनु तनु टर्यो न टार्यो। जिमि गज अर्क फलनि को मार्यो॥3॥
भावार्थ:
रीछ-वानर एक-एक बार में ही करोड़ों पहाड़ों के शिखरों से उस पर प्रहार करते हैं, परन्तु इससे न तो उसका मन ही मुड़ा (विचलित हुआ) और न शरीर ही टाले टला, जैसे मदार के फलों की मार से हाथी पर कुछ भी असर नहीं होता!॥3॥
English :
IAST :
Meaning :