गङ्गा स्तुति
गङ्गा-स्तुति
राग रामकली
१७
जय जय भगीरथनन्दिनि,मुनि-चय चकोर-चन्दिनि,
नर-नाग-बिबुध-बन्दिनि जय जह्नु बालिका।
बिस्नु-पद-सरोजजासि,ईस-सीसपर बिभासि,
त्रिपथगासि,पुन्यरासि,पाप-छालिका ॥ १ ॥
बिमल बिपुल बहसि बारि, सीतल त्रयताप-हारि,
भँवर बर बिभङ्गतर तरङ्ग-मालिका।
पुरजन पूजोपहार,सोभित ससि धवलधार,
भञ्जन भव-भार, भक्ति-कल्पथालिका ॥ २ ॥
निज तटबासी बिहङ्ग, जल-थल-चर पसु-पतङ्ग,
कीट,जटिल तापस सब सरिस पालिका।
तुलसी तव तीर तीर सुमिरत रघुबंस-बीर,
बिचरत मति देहि मोह-महिष-कालिका ॥ ३ ॥
१८
जयति जय सुरसरी जगदखिल-पावनी।
विष्णु-पदकञ्ज-मकरन्द इव अम्बुवर वहसि,दुख दहसि,अघवृन्द-विद्राविनी ॥ १ ॥
मिलितजलपात्र-अजयुक्त-हरिचरणरज,विरज-वर-वारि त्रिपुरारि शिर-धामिनी।
जह्नु-कन्या धन्य,पुण्यकृत सगर-सुत,भूधरद्रोणि-विद्दरणि,बहुनामिनी ॥ २ ॥
यक्ष,गन्धर्व,मुनि,किन्नरोरग,दनुज,मनुज मज्जहिं सुकृत-पुञ्ज युत-कामिनी।
स्वर्ग-सोपान,विज्ञान-ज्ञानप्रदे,मोह-मद-मदन-पाथोज-हिमयामिनी ॥ ३ ॥
हरित गम्भीर वानीर दुहुँ तीरवर,मध्य धारा विशद,विश्व अभिरामिनी।
नील-पर्यक-कृत-शयन सर्पेश जनु,सहस सीसावली स्त्रोत सुर-स्वामिनी ॥ ४ ॥
अमित-महिमा,अमितरूप,भूपावली-मुकुट-मनिवन्द्य त्रेलोक पथगामिनी।
देहि रघुबीर-पद-प्रीति निर्भर मातु, दासतुलसी त्रासहरणि भवभामिनी ॥ ५ ॥
१९
हरनि पाप त्रिबिध ताप सुमिरत सुरसरित।
बिलसति महि कल्प-बेलि मुद-मनोरथ-फरित ॥ १ ॥
सोहत ससि धवल धार सुधा-सलिल-भरित।
बिमलतर तरङ्ग लसत रघुबरके-से चरित ॥ २ ॥
तो बिनु जगदम्ब गङ्ग कलिजुग का करित ?
घोर भव अपारसिन्धु तुलसी किमि तरित ॥ ३ ॥
२०
ईस-सीस बससि, त्रिपथ लससि, नभ-पताल-धरनि।
सुर-नर-मुनि-नाग-सिद्ध-सुजन मङ्गल-करनि ॥ १ ॥
देखत दुख-दोष-दुरित-दाह-दारिद-दरनि।
सगर-सुवन साँसति-समनि,जलनिधि जल भरनि ॥ २ ॥
महिमाकी अवधि करसि बहु बिधि हरि-हरनि।
तुलसी करु बानि बिमल, बिमल बारि बरनि ॥ ३ ॥