गावहिं मंगल कोकिलबयनीं। बिधुबदनीं मृगसावकनयनीं॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
गावहिं मंगल कोकिलबयनीं।
बिधुबदनीं मृगसावकनयनीं॥4॥
भावार्थ:
कोयल की सी मीठी वाणी वाली, चन्द्रमा के समान मुख वाली और हिरन के बच्चे के से नेत्रों वाली स्त्रियाँ मंगलगान करने लगीं॥4॥
English :
IAST :
Meaning :