चतुर सखीं लखि कहा बुझाई। पहिरावहु जयमाल सुहाई॥ सुनत जुगल कर माल उठाई। प्रेम बिबस पहिराइ न जाई॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kand
चतुर सखीं लखि कहा बुझाई। पहिरावहु जयमाल सुहाई॥
सुनत जुगल कर माल उठाई। प्रेम बिबस पहिराइ न जाई॥3॥
भावार्थ:
चतुर सखी ने यह दशा देखकर समझाकर कहा- सुहावनी जयमाला पहनाओ। यह सुनकर सीताजी ने दोनों हाथों से माला उठाई, पर प्रेम में विवश होने से पहनाई नहीं जाती॥3॥
English :
IAST :
Meaning :