चहू चतुर कहुँ नाम अधारा। ग्यानी प्रभुहि बिसेषि पिआरा॥ चहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ। कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 21.4| |Caupāī 21.4
चहू चतुर कहुँ नाम अधारा। ग्यानी प्रभुहि बिसेषि पिआरा॥
चहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ। कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ॥4॥
भावार्थ:-चारों ही चतुर भक्तों को नाम का ही आधार है, इनमें ज्ञानी भक्त प्रभु को विशेष रूप से प्रिय हैं। यों तो चारों युगों में और चारों ही वेदों में नाम का प्रभाव है, परन्तु कलियुग में विशेष रूप से है। इसमें तो (नाम को छोड़कर) दूसरा कोई उपाय ही नहीं है॥4॥
cahū catura kahuom nāma adhārā. gyānī prabhuhi bisēṣi piārā..
cahuom juga cahuom śruti nā prabhāū. kali bisēṣi nahiṃ āna upāū..
All the four, clever as they are, rely upon the Name. Of these the enlightened devotee is specially dear to the Lord. The glory of the Name is supreme in all the four Yugas and all the four Vedas, particularly in the Kali age, in which there is no other means of salvation.(4)