जद्यपि जग दारुन दुख नाना। सब तें कठिन जाति अवमाना॥ समुझि सो सतिहि भयउ अति क्रोधा। बहु बिधि जननीं कीन्ह प्रबोधा॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई (62.4) | Caupāī (62.4)
जद्यपि जग दारुन दुख नाना। सब तें कठिन जाति अवमाना॥
समुझि सो सतिहि भयउ अति क्रोधा। बहु बिधि जननीं कीन्ह प्रबोधा॥4॥
भावार्थ:-यद्यपि जगत में अनेक प्रकार के दारुण दुःख हैं, तथापि, जाति अपमान सबसे बढ़कर कठिन है। यह समझकर सतीजी को बड़ा क्रोध हो आया। माता ने उन्हें बहुत प्रकार से समझाया-बुझाया॥4॥
jadyapi jaga dāruna dukha nānā. saba tēṃ kaṭhina jāti avamānā..
samujhi sō satihi bhayau ati krōdhā. bahu bidhi jananīṃ kīnha prabōdhā..
Although there are terrible agonies of various kinds in this world, the insult offered to one’s own people is the most painful of them all. The thought of the same made Sats furious. Her mother tried to pacify Her in many ways.