जद्यपि प्रगट न कहेउ भवानी। हर अंतरजामी सब जानी॥ सुनहि सती तव नारि सुभाऊ। संसय अस न धरिअ उर काऊ॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 50.3 | Caupāī 50.3
जद्यपि प्रगट न कहेउ भवानी। हर अंतरजामी सब जानी॥
सुनहि सती तव नारि सुभाऊ। संसय अस न धरिअ उर काऊ॥3॥
भावार्थ:-यद्यपि भवानीजी ने प्रकट कुछ नहीं कहा, पर अन्तर्यामी शिवजी सब जान गए। वे बोले- हे सती! सुनो, तुम्हारा स्त्री स्वभाव है। ऐसा संदेह मन में कभी न रखना चाहिए॥3॥
jadyapi pragaṭa na kahēu bhavānī. hara aṃtarajāmī saba jānī..
sunahi satī tava nāri subhāū. saṃsaya asa na dharia ura kāū..
Although Bhavani (Goddess Parvati) did not open Her lips, Lord Hara (Shiva), Who is the inner controller of all, came to know everything. “Look here, Sati, the woman is foremost in you; you should never harbour such a doubt in your mind.