जस कछु बुधि बिबेक बल मेरें। तस कहिहउँ हियँ हरि के प्रेरें॥ निज संदेह मोह भ्रम हरनी। करउँ कथा भव सरिता तरनी॥2॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 30.2| |Caupāī 30.2
जस कछु बुधि बिबेक बल मेरें। तस कहिहउँ हियँ हरि के प्रेरें॥
निज संदेह मोह भ्रम हरनी। करउँ कथा भव सरिता तरनी॥2॥
भावार्थ:-जैसा कुछ मुझमें बुद्धि और विवेक का बल है, मैं हृदय में हरि की प्रेरणा से उसी के अनुसार कहूँगा। मैं अपने संदेह, अज्ञान और भ्रम को हरने वाली कथा रचता हूँ, जो संसार रूपी नदी के पार करने के लिए नाव है॥2॥
jasa kachu budhi bibēka bala mērēṃ. tasa kahihauom hiyaom hari kē prērēṃ..
nija saṃdēha mōha bhrama haranī. karauom kathā bhava saritā taranī..
Equipped with what little intellectual and critical power I possess I shall write with a heart inspired by Sri Hari. The story I am going to tell is such as will dispel my own doubts, errors and delusion and will serve as a boat for crossing the stream of mundane existence.