जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग। पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग॥11॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
दोहा 11 |Dohas 11
जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग॥11॥
भावार्थ:-उन कविता रूपी मुक्तामणियों को युक्ति से बेधकर फिर रामचरित्र रूपी सुंदर तागे में पिरोकर सज्जन लोग अपने निर्मल हृदय में धारण करते हैं, जिससे अत्यन्त अनुराग रूपी शोभा होती है (वे आत्यन्तिक प्रेम को प्राप्त होते हैं)॥11॥
juguti bēdhi puni pōhiahiṃ rāmacarita bara tāga.
pahirahiṃ sajjana bimala ura sōbhā ati anurāga..11..
If those pearls are pierced with skill and strung together on the beautiful thread of Sri Rama’s exploits, and if noble souls wear them in their innocent heart, grace in the form of excessive fondness is the result.(11)