जोरि पानि प्रभु कीन्ह प्रनामू। पिता समेत लीन्ह निज नामू॥ कहेउ बहोरि कहाँ बृषकेतू। बिपिन अकेलि फिरहु केहि हेतू॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 52.4 | Caupāī 52.4
जोरि पानि प्रभु कीन्ह प्रनामू। पिता समेत लीन्ह निज नामू॥
कहेउ बहोरि कहाँ बृषकेतू। बिपिन अकेलि फिरहु केहि हेतू॥4॥
भावार्थ:-पहले प्रभु ने हाथ जोड़कर सती को प्रणाम किया और पिता सहित अपना नाम बताया। फिर कहा कि वृषकेतु शिवजी कहाँ हैं? आप यहाँ वन में अकेली किसलिए फिर रही हैं?॥4॥
jōri pāni prabhu kīnha pranāmū. pitā samēta līnha nija nāmū..
kahēu bahōri kahāom bṛṣakētū. bipina akēli phirahu kēhi hētū..
Joining the palms of His hands, He first made obeisance to Her mentioning His name alongwith His father’s. He then asked Her the whereabouts of Lord Siva (who has a bull emblazoned on His standard) and wondered what made Her roam about all alone in the forest.