तारन तरन हरन सब दूषन। तुलसिदास प्रभु त्रिभुवन भूषन॥5॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
सप्तमः सोपानः | Descent 7th
श्री उत्तरकाण्ड | Shri Uttara Kanda
चौपाई :
तारन तरन हरन सब दूषन।
तुलसिदास प्रभु त्रिभुवन भूषन॥5॥
भावार्थ:
आप तरन-तारन (स्वयं तरे हुए और दूसरों को तारने वाले) तथा सब दोषों को हरने वाले हैं। तीनों लोकों के विभूषण आप ही तुलसीदास के स्वामी हैं॥5॥
IAST :
Meaning :