तुम्ह तौ देहु सरल सिख सोई। जो आचरत मोर भल होई॥ जद्यपि यह समुझत हउँ नीकें। तदपि होत परितोष न जी कें॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
तुम्ह तौ देहु सरल सिख सोई। जो आचरत मोर भल होई॥
जद्यपि यह समुझत हउँ नीकें। तदपि होत परितोष न जी कें॥3॥
भावार्थ:
आप तो मुझे वही सरल शिक्षा दे रहे हैं, जिसके आचरण करने में मेरा भला हो। यद्यपि मैं इस बात को भलीभाँति समझता हूँ, तथापि मेरे हृदय को संतोष नहीं होता॥3॥
English :
IAST :
Meaning :