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इंटरनेट पर श्रीरामजी का सबसे बड़ा विश्वकोश | RamCharitManas Ramayana in Hindi English | रामचरितमानस रामायण हिंदी अनुवाद अर्थ सहित

Ramayana

तुलसीदास जी के द्वारा मानस में स्वयं का वर्णन

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तुलसीदास की भक्ति भावना

तुलसीदास की राम के विवरण और वर्णन में अपनी असमर्थता को प्रकट करती विनम्रता देखते ही बनती है…परन्तु कुटिल खल कामियों को हंसी- हंसी में विनम्रता के आवरण में कब तंज़ कर जाते हैं , पता ही नहीं चलता ….

मति अति नीच ऊँची रूचि आछी । चहिअ अमिअ जग सुरइ न छाछी ।।
छमिहहिं सज्जन मोरी ढिठाई । सुनिहहिं बालबचन मन भाई ।।

मेरी बुद्धि तो अत्यंत नीची है , और चाह बड़ी ऊँची है । चाह तो अमृत पाने की है पर जगत में जुडती छाछ भी नहीं है । सज्जन मेरी ढिठाई को क्षमा करेंगे और मेरे बाल वचनों को मन लगाकर सुनेंगे ।

जों बालक कह तोतरी बाता । सुनहिं मुदित मन पित अरु माता । ।
हंसीहंही पर कुटिल सुबिचारी । जे पर दूषण भूषनधारी । ।

जैसे बालक तोतला बोलता है , तो उसके माता- पिता उन्हें प्रसन्न मन से सुनते हैं किन्तु कुटिल और बुरे विचार वाले लोंग जो दूसरों के दोषों को ही भूषण रूप से धारण किये रहते हैं , हँसेंगे ही …

निज कवित्त कही लाग न नीका । सरस होई अथवा अति फीका ।।
जे पर भनिति सुनत हरषाहीं । ते बर पुरुष बहुत जग नाहिं ॥

रसीली हो या फीकी अपनी कविता किसे अच्छी नहीं लगती किन्तु जो दूसरे की रचना को सुनकर हर्षित होते हैं , ऐसे उत्तम पुरुष (व्यक्ति ) जगत में बहुत नहीं हैं …

जग बहू नर सर सरि सम भाई । जे निज बाढहिं बढ़हिं जल पाई॥
सज्जन सकृत सिन्धु सम कोई । देखी पुर बिधु बाढ़ई जोई ।

जगत में तालाबों और नदियों के समान मनुष्य ही अधिक है जो जल पाकर अपनी ही बाढ़ से बढ़ते हैं अर्थात अपनी ही उन्नति से प्रसन्न होते हैं . समुद्र – सा तो कि एक बिरला ही सज्जन होता है जो चन्द्रमा को पूर्ण देख कर उमड़ पड़ता है …

महाकाव्य लिखने में तुलसी की विनम्रता देखते ही बनती है …जहाँ आप -हम कुछेक कवितायेँ लिख कर अपने आपको कवि मान प्रफ्फुलित हो बैठते हैं और त्रुटियों की ओर ध्यान दिलाते ही भृकुटी तान लेते हैं , वहीँ ऐसा अद्भुत महाकाव्य रचने के बाद भी तुलसीदास खुद को निरा अनपढ़ ही बताते हैं …

कबित्त विवेक एक नहीं मोरे . सत्य कहूँ लिखी कागद कोरे …

काव्य सम्बन्धी एक भी बात का ज्ञान मुझे नहीं है , यह मैं शपथ पूर्वक सत्य कहता हूँ …मगर श्री राम का नाम जुड़ा होने के कारण ही यह महाकाव्य सुन्दर बन पड़ा है ..

मनि मानिक मुकुता छबि जैसी . अहि गिरी गज सर सोह न तैसी
नृप किरीट तरुनी तनु पाई . लहहीं सकल संग सोभा अधिकाई …

मणि, मानिक और मोती जैसी सुन्दर छवि है मगर सांप , पर्वत और हाथी के मस्तक पर वैसी सोभा नहीं पाते हैं …राजा के मुकुट और नवयुवती स्त्री के शरीर पर ही ये अधिक शोभा प्राप्त करते हैं ..

अति अपार जे सरित बर जून नृप सेतु कराहीं .
चढ़ी पिपिलिकउ परम लघु बिनु श्रम पारहि जाहिं..

जो अत्यंत श्रेष्ठ नदियाँ हैं , यदि राजा उनपर पुल बंधा देता है तो अत्यंत छोटी चीटियाँ भी उन पर चढ़कर बिना परिश्रम के पार चली जाती हैं …

सरल कबित्त कीरति सोई आदरहिं सुजान …

अर्थात चतुर पुरुष (व्यक्ति ) उसी कविता का आदर करते हैं , जो सरल हो , जिसमे निर्मल चरित्र का वर्णन हो …

जलु पे सरिस बिकाई देखउं प्रीति की रीती भली
बिलग होई रसु जाई कपट खटाई परत पुनि ..

प्रीति की सुन्दर रीती देखिये कि जल भी दूध के साथ मिलाकर दूध के समान बिकता है , परन्तु कपटरूपी खटाई पड़ते ही पानी अलग हो जाता है (दूध फट जाता है ) स्वाद (प्रेम )जाता रहता है …

दुष्टों की वंदना और उनकी विशेषताओं का वर्णन बहुत ही सुन्दर तरीके से किया है …संगति का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है …इसको भी बहुत अच्छी तरह समझाया है ..-

गगन चढ़इ राज पवन प्रसंगा । कीचहिं मिलइ नीच जल संगा॥
साधु असाधु सदन सुक सारिण । सुमिरहिं राम देहि गनि गारीं ॥

पवन के संग से धूल आकाश पर चढ़ जाती है और वही नीच (नीचे की ओर बहने वाले ) जल के संग में कीचड़ में मिल जाती है …साधु के घर में तोता मैना राम -राम सुमिरते हैं और असाधु के घर के तोता मैना गिन गिन कर गलियां बकते हैं …

धूम कुसंगति कारिख होई । लिखिअ पुरान मंजू मसि सोई ॥
सोई जल अनल अनिल संघाता । होई जलद जग जीवन दाता ॥

कुसंग के कारण धुंआ कालिख कहलाता है , वही धुंआ सुन्दर स्याही होकर पुराण लिखने के काम आता है और वही धुंआ जल , अग्नि और पवन के संग मिलकर बादल होकर जगत में जीवन देने वाला बन जाता है …

नजर और नजरिये के फर्क को भी क्या खूब समझाया है …

सम प्रकाश तम पाख दूँहूँ नाम भेद बिधि किन्ह।
ससी सोषक पोषक समुझी जग जस अपजस दिन्ह॥

महीने के दोनों पखवाड़ों में उजियाला और अँधेरा समान रहता है , परन्तु विधाता ने इनके नाम में भेद कर दिया है . एक को चन्द्रमा को बढाने वाला और दूसरे को घटाने वाला समझकर जगत ने एक को यश और दूसरे को अपयश दिया …


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Shiv

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