ते पितु मातु कहहु सखि कैसे। जिन्ह पठए बन बालक ऐसे॥ राम लखन सिय रूपु निहारी। होहिं सनेह बिकल नर नारी॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
ते पितु मातु कहहु सखि कैसे। जिन्ह पठए बन बालक ऐसे॥
राम लखन सिय रूपु निहारी। होहिं सनेह बिकल नर नारी॥4॥
भावार्थ:
(इधर गाँव की स्त्रियाँ कह रही हैं) हे सखी! कहो तो, वे माता-पिता कैसे हैं, जिन्होंने ऐसे (सुंदर सुकुमार) बालकों को वन में भेज दिया है। श्री रामजी, लक्ष्मणजी और सीताजी के रूप को देखकर सब स्त्री-पुरुष स्नेह से व्याकुल हो जाते हैं॥4॥
English :
IAST :
Meaning :