नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद् रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
श्लोक 7 | śloka 7
नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्
रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा
भाषानिबन्धमतिमंजुलमातनोति॥7॥
भावार्थ:-अनेक पुराण, वेद और (तंत्र) शास्त्र से सम्मत तथा जो रामायण में वर्णित है और कुछ अन्यत्र से भी उपलब्ध श्री रघुनाथजी की कथा को तुलसीदास अपने अन्तःकरण के सुख के लिए अत्यन्त मनोहर भाषा रचना में विस्तृत करता है॥7॥
nānāpurāṇanigamāgamasammataṃ yad
rāmāyaṇē nigaditaṃ kvacidanyatō.pi.
svāntaḥsukhāya tulasī raghunāthagāthā
bhāṣānibandhamatimañjulamātanōti..7..
For the gratification of his own self Tulasidasa brings forth this very elegant composition relating in common parlance the story of the Lord of Raghus, which is in accord with the various Puranas, Vedas and the agamas (Tantras), and incorporates what has been recorded in the Ramayana (of Valmiki) and culled from some other sources.(7)