नाम रूप गति अकथ कहानी। समुझत सुखद न परति बखानी॥ अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी। उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 20.4| |Caupāī 20.4
नाम रूप गति अकथ कहानी। समुझत सुखद न परति बखानी॥
अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी। उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी॥4॥
भावार्थ:-नाम और रूप की गति की कहानी (विशेषता की कथा) अकथनीय है। वह समझने में सुखदायक है, परन्तु उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। निर्गुण और सगुण के बीच में नाम सुंदर साक्षी है और दोनों का यथार्थ ज्ञान कराने वाला चतुर दुभाषिया है॥4॥
nāma rūpa gati akatha kahānī. samujhata sukhada na parati bakhānī..
aguna saguna bica nāma susākhī. ubhaya prabōdhaka catura dubhāṣī..
The mystery of name and form is a tale which cannot be told; though delightful to comprehend, it cannot be described in words. Between the unqualified Absolute and qualified Divinity, the Name is a good intermediary; it is a clever interpreter revealing the truth of both.(4)