पय पयोधि तजि अवध बिहाई। जहँ सिय लखनु रामु रहे आई॥ कहि न सकहिं सुषमा जसि कानन। जौं सत सहस होहिं सहसानन॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
पय पयोधि तजि अवध बिहाई। जहँ सिय लखनु रामु रहे आई॥
कहि न सकहिं सुषमा जसि कानन। जौं सत सहस होहिं सहसानन॥3॥
भावार्थ:
क्षीर सागर को त्यागकर और अयोध्या को छोड़कर जहाँ सीताजी, लक्ष्मणजी और श्री रामचन्द्रजी आकर रहे, उस वन की जैसी परम शोभा है, उसको हजार मुख वाले जो लाख शेषजी हों तो वे भी नहीं कह सकते॥3॥
English :
IAST :
Meaning :