परिजन पुरजन प्रजा बोलाए। समाधानु करि सुबस बसाए॥ सानुज गे गुर गेहँ बहोरी। करि दंडवत कहत कर जोरी॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
परिजन पुरजन प्रजा बोलाए। समाधानु करि सुबस बसाए॥
सानुज गे गुर गेहँ बहोरी। करि दंडवत कहत कर जोरी॥3॥
भावार्थ:
भरतजी ने फिर परिवार के लोगों को, नागरिकों को तथा अन्य प्रजा को बुलाकर, उनका समाधान करके उनको सुखपूर्वक बसाया। फिर छोटे भाई शत्रुघ्नजी सहित वे गुरुजी के घर गए और दंडवत करके हाथ जोड़कर बोले-॥3॥
English :
IAST :
Meaning :