पर अकाजु लगि तनु परिहरहीं। जिमि हिम उपल कृषी दलि गरहीं॥ बंदउँ खल जस सेष सरोषा। सहस बदन बरनइ पर दोषा॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई4 |Caupāī 4
पर अकाजु लगि तनु परिहरहीं। जिमि हिम उपल कृषी दलि गरहीं॥
बंदउँ खल जस सेष सरोषा। सहस बदन बरनइ पर दोषा॥4॥
भावार्थ:-जैसे ओले खेती का नाश करके आप भी गल जाते हैं, वैसे ही वे दूसरों का काम बिगाड़ने के लिए अपना शरीर तक छोड़ देते हैं। मैं दुष्टों को (हजार मुख वाले) शेषजी के समान समझकर प्रणाम करता हूँ, जो पराए दोषों का हजार मुखों से बड़े रोष के साथ वर्णन करते हैं॥4॥
para akāju lagi tanu pariharahīṃ. jimi hima upala kṛṣī dali garahīṃ..
baṃdauom khala jasa sēṣa sarōṣā. sahasa badana baranai para dōṣā..
They lay down their very life in order to be able to harm others, even as hail-stones dissolve after destroying the crop. I reverence a wicked soul as the fiery (thousand-tongued) serpent-god Sesa, in so far as he eagerly expatiates on others’ faults with a thousand tongues as it were.