पिता भवन जब गईं भवानी। दच्छ त्रास काहुँ न सनमानी॥ सादर भलेहिं मिली एक माता। भगिनीं मिलीं बहुत मुसुकाता॥1॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई (62.1) | Caupāī (62.1)
पिता भवन जब गईं भवानी। दच्छ त्रास काहुँ न सनमानी॥
सादर भलेहिं मिली एक माता। भगिनीं मिलीं बहुत मुसुकाता॥1॥
भावार्थ:-भवानी जब पिता (दक्ष) के घर पहुँची, तब दक्ष के डर के मारे किसी ने उनकी आवभगत नहीं की, केवल एक माता भले ही आदर से मिली। बहिनें बहुत मुस्कुराती हुई मिलीं॥1॥
pitā bhavana jaba gaī bhavānī. daccha trāsa kāhuom na sanamānī..
sādara bhalēhiṃ milī ēka mātā. bhaginīṃ milīṃ bahuta musukātā..
When Bhavani (etymologically, the Consort of Bhava, an epithet of Siva) reached Her father’s house, no one greeted Her for fear of incurring Daksha displeasure. Her mother was the solitary figure who met Her kindly. Her sisters received Her with profuse smiles.