पुनि मन बचन कर्म रघुनायक। चरन कमल बंदउँ सब लायक॥ राजीवनयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक॥5॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 17.5| | Caupāī 17.5
पुनि मन बचन कर्म रघुनायक। चरन कमल बंदउँ सब लायक॥
राजीवनयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक॥5॥
भावार्थ:-फिर मैं मन, वचन और कर्म से कमलनयन, धनुष-बाणधारी, भक्तों की विपत्ति का नाश करने और उन्हें सुख देने वाले भगवान् श्री रघुनाथजी के सर्व समर्थ चरण कमलों की वन्दना करता हूँ॥5॥
puni mana bacana karma raghunāyaka. carana kamala baṃdauom saba lāyaka..
rājivanayana dharēṃ dhanu sāyaka. bhagata bipati bhaṃjana sukha dāyaka.
Again, I adore, in thought, word and deed, the lotus feet of the all-worthy Lord of Raghus, who has lotus-like eyes and wields a bow and arrows, and who relieves the distress of His devotees and affords delight to them.(5)