पूरन राम सुपेम पियूषा। गुर अवमान दोष नहिं दूषा॥ राम भगत अब अमिअँ अघाहूँ। कीन्हेहु सुलभ सुधा बसुधाहूँ॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
पूरन राम सुपेम पियूषा। गुर अवमान दोष नहिं दूषा॥
राम भगत अब अमिअँ अघाहूँ। कीन्हेहु सुलभ सुधा बसुधाहूँ॥3॥
भावार्थ:
यह चन्द्रमा श्री रामचन्द्रजी के सुंदर प्रेम रूपी अमृत से पूर्ण है। यह गुरु के अपमान रूपी दोष से दूषित नहीं है। तुमने इस यश रूपी चन्द्रमा की सृष्टि करके पृथ्वी पर भी अमृत को सुलभ कर दिया। अब श्री रामजी के भक्त इस अमृत से तृप्त हो लें॥3॥
English :
IAST :
Meaning :