प्रनवउँ प्रथम भरत के चरना। जासु नेम ब्रत जाइ न बरना॥ राम चरन पंकज मन जासू। लुबुध मधुप इव तजइ न पासू॥2॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 16.2| Caupāī 16.2
प्रनवउँ प्रथम भरत के चरना। जासु नेम ब्रत जाइ न बरना॥
राम चरन पंकज मन जासू। लुबुध मधुप इव तजइ न पासू॥2॥
भावार्थ:-(भाइयों में) सबसे पहले मैं श्री भरतजी के चरणों को प्रणाम करता हूँ, जिनका नियम और व्रत वर्णन नहीं किया जा सकता तथा जिनका मन श्री रामजी के चरणकमलों में भौंरे की तरह लुभाया हुआ है, कभी उनका पास नहीं छोड़ता॥2॥
pranavauom prathama bharata kē caranā. jāsu nēma brata jāi na baranā..
rāma carana paṃkaja mana jāsū. lubudha madhupa iva tajai na pāsū..
Of Sri Rama’s brothers, I bow, first of all, to the feet of Bharata, whose self-discipline and religious austerity beggar description and whose mind thirsts for the lotus feet of Sri Rama like a bee and never leaves their side.