बहुरि बिलोकेउ नयन उघारी। कछु न दीख तहँ दच्छकुमारी॥ पुनि पुनि नाइ राम पद सीसा। चलीं तहाँ जहँ रहे गिरीसा॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 54.4 | Caupāī 54.4
बहुरि बिलोकेउ नयन उघारी। कछु न दीख तहँ दच्छकुमारी॥
पुनि पुनि नाइ राम पद सीसा। चलीं तहाँ जहँ रहे गिरीसा॥4॥
भावार्थ:-फिर आँख खोलकर देखा, तो वहाँ दक्षकुमारी (सतीजी) को कुछ भी न दिख पड़ा। तब वे बार-बार श्री रामचन्द्रजी के चरणों में सिर नवाकर वहाँ चलीं, जहाँ श्री शिवजी थे॥4॥
bahuri bilōkēu nayana ughārī. kachu na dīkha tahaom dacchakumārī..
puni puni nāi rāma pada sīsā. calīṃ tahāom jahaom rahē girīsā..
When She opened Her eyes and gazed once more, the daughter of Daksa saw nothing there. Repeatedly bowing Her head at the feet of Sri Rama, She proceeded to the spot where the Lord of Kailasa was.