बिष्नु जो सुर हित नरतनु धारी। सोउ सर्बग्य जथा त्रिपुरारी॥ खोजइ सो कि अग्य इव नारी। ग्यानधाम श्रीपति असुरारी॥1॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 50.1 | Caupāī 50.1
बिष्नु जो सुर हित नरतनु धारी। सोउ सर्बग्य जथा त्रिपुरारी॥
खोजइ सो कि अग्य इव नारी। ग्यानधाम श्रीपति असुरारी॥1॥
भावार्थ:-देवताओं के हित के लिए मनुष्य शरीर धारण करने वाले जो विष्णु भगवान् हैं, वे भी शिवजी की ही भाँति सर्वज्ञ हैं। वे ज्ञान के भंडार, लक्ष्मीपति और असुरों के शत्रु भगवान् विष्णु क्या अज्ञानी की तरह स्त्री को खोजेंगे?॥1॥
biṣnu jō sura hita naratanu dhārī. sōu sarbagya jathā tripurārī..
khōjai sō ki agya iva nārī. gyānadhāma śrīpati asurārī..
Even Visnu Who takes a human form for the sake of gods, is omniscient like the Slayer of Tripura, Siva. Can He wander in search of His Consort like an ignorant man— He who is a repository of knowledge, the Lord of Sri (the goddess of prosperity) and the slayer of demons?