भनिति मोरि सिव कृपाँ बिभाती। ससि समाज मिलि मनहुँ सुराती॥ जे एहि कथहि सनेह समेता। कहिहहिं सुनिहहिं समुझि सचेता॥5॥ होइहहिं राम चरन अनुरागी। कलि मल रहित सुमंगल भागी॥6॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 14(छ 5-6)| Caupai 14(cha 5-6)
भनिति मोरि सिव कृपाँ बिभाती।
ससि समाज मिलि मनहुँ सुराती॥
जे एहि कथहि सनेह समेता। कहिहहिं सुनिहहिं समुझि सचेता॥5॥
होइहहिं राम चरन अनुरागी। कलि मल रहित सुमंगल भागी॥6॥
भावार्थ:-मेरी कविता श्री शिवजी की कृपा से ऐसी सुशोभित होगी, जैसी तारागणों के सहित चन्द्रमा के साथ रात्रि शोभित होती है, जो इस कथा को प्रेम सहित एवं सावधानी के साथ समझ-बूझकर कहें-सुनेंगे, वे कलियुग के पापों से रहित और सुंदर कल्याण के भागी होकर श्री रामचन्द्रजी के चरणों के प्रेमी बन जाएँगे॥5-6॥
bhaniti mōri siva kṛpāom bibhātī. sasi samāja mili manahuom surātī..
jē ēhi kathahi sanēha samētā. kahihahiṃ sunihahiṃ samujhi sacētā..
hōihahiṃ rāma carana anurāgī. kali mala rahita sumaṃgala bhāgī..
By Siva grace my composition will shed its lustre even as a night shines in conjunction with the moon and the stars. Those who will fondly and intelligently recite or hear this story with attention will develop devotion to the feet of Sri Rama and, purged of the impurities of Kali, will obtain choice blessings.(5-6)