भेंटत भरतु ताहि अति प्रीती। लोग सिहाहिं प्रेम कै रीती॥ धन्य धन्य धुनि मंगल मूला। सुर सराहि तेहि बरिसहिं फूला॥1॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
भेंटत भरतु ताहि अति प्रीती। लोग सिहाहिं प्रेम कै रीती॥
धन्य धन्य धुनि मंगल मूला। सुर सराहि तेहि बरिसहिं फूला॥1॥
भावार्थ:
भरतजी गुह को अत्यन्त प्रेम से गले लगा रहे हैं। प्रेम की रीति को सब लोग सिहा रहे हैं (ईर्षापूर्वक प्रशंसा कर रहे हैं)। मंगल की मूल ‘धन्य-धन्य’ की ध्वनि करके देवता उसकी सराहना करते हुए फूल बरसा रहे हैं॥1॥
English :
IAST :
Meaning :