राम भगति भूषित जियँ जानी। सुनिहहिं सुजन सराहि सुबानी॥ कबि न होउँ नहिं बचन प्रबीनू। सकल कला सब बिद्या हीनू॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 8.4| Caupāī 8.4
राम भगति भूषित जियँ जानी।
सुनिहहिं सुजन सराहि सुबानी॥
कबि न होउँ नहिं बचन प्रबीनू। सकल कला सब बिद्या हीनू॥4॥
भावार्थ:-सज्जनगण इस कथा को अपने जी में श्री रामजी की भक्ति से भूषित जानकर सुंदर वाणी से सराहना करते हुए सुनेंगे। मैं न तो कवि हूँ, न वाक्य रचना में ही कुशल हूँ, मैं तो सब कलाओं तथा सब विद्याओं से रहित हूँ॥4॥
rāma bhagati bhūṣita jiyaom jānī. sunihahiṃ sujana sarāhi subānī..
kabi na hōuom nahiṃ bacana prabīnū. sakala kalā saba bidyā hīnū..
Knowing it in their heart as adorned with devotion to Sri Rama, the virtuous will listen to it with bland words of praise. I am no poet nor an adept in the art of speech and am a cipher in all arts and sciences.