राम सैल सोभा निरखि भरत हृदयँ अति पेमु। तापस तप फलु पाइ जिमि सुखी सिरानें नेमु॥236॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
दोहा :
राम सैल सोभा निरखि भरत हृदयँ अति पेमु।
तापस तप फलु पाइ जिमि सुखी सिरानें नेमु॥236॥
भावार्थ:
श्री रामजी के पर्वत की शोभा देखकर भरतजी के हृदय में अत्यंत प्रेम हुआ। जैसे तपस्वी नियम की समाप्ति होने पर तपस्या का फल पाकर सुखी होता है॥236॥
English :
IAST :
Meaning :