रिपुसूदन पद कमल नमामी। सूर सुसील भरत अनुगामी॥ महाबीर बिनवउँ हनुमाना। राम जासु जस आप बखाना॥5॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 16.5| Caupāī 16.5
रिपुसूदन पद कमल नमामी। सूर सुसील भरत अनुगामी॥
महाबीर बिनवउँ हनुमाना। राम जासु जस आप बखाना॥5॥
भावार्थ:-मैं श्री शत्रुघ्नजी के चरणकमलों को प्रणाम करता हूँ, जो बड़े वीर, सुशील और श्री भरतजी के पीछे चलने वाले हैं। मैं महावीर श्री हनुमानजी की विनती करता हूँ, जिनके यश का श्री रामचन्द्रजी ने स्वयं (अपने श्रीमुख से) वर्णन किया है॥5॥
ripusūdana pada kamala namāmī. sūra susīla bharata anugāmī..
mahāvīra binavauom hanumānā. rāma jāsu jasa āpa bakhānā..
I adore the lotus feet of Satrughna (lit., the slayer of his foes), who is valiant yet amiable in disposition, and a constant companion of Bharata. I supplicate Hanuman, the great hero, whose glory has been extolled by Sri Rama Himself.(5)