रीझत राम सनेह निसोतें। को जग मंद मलिनमति मोतें॥6॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 27.6| |Caupāī 27.6
रीझत राम सनेह निसोतें। को जग मंद मलिनमति मोतें॥6॥
भावार्थ:-श्री रामजी तो विशुद्ध प्रेम से ही रीझते हैं, पर जगत में मुझसे बढ़कर मूर्ख और मलिन बुद्धि और कौन होगा?॥6॥
rījhata rāma sanēha nisōtēṃ. kō jaga maṃda malinamati mōtēṃ..
Sri Rama gets pleased with unalloyed love; but who is duller and more impure of mind in this world than I ?