लछिमन दीख उमाकृत बेषा। चकित भए भ्रम हृदयँ बिसेषा॥ कहि न सकत कछु अति गंभीरा। प्रभु प्रभाउ जानत मतिधीरा॥1॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 52.1 | Caupāī 52.1
लछिमन दीख उमाकृत बेषा। चकित भए भ्रम हृदयँ बिसेषा॥
कहि न सकत कछु अति गंभीरा। प्रभु प्रभाउ जानत मतिधीरा॥1॥
भावार्थ:-सतीजी के बनावटी वेष को देखकर लक्ष्मणजी चकित हो गए और उनके हृदय में बड़ा भ्रम हो गया। वे बहुत गंभीर हो गए, कुछ कह नहीं सके। धीर बुद्धि लक्ष्मण प्रभु रघुनाथजी के प्रभाव को जानते थे॥1॥
lachimana dīkha umākṛta bēṣā cakita bhaē bhrama hṛdayaom bisēṣā..
kahi na sakata kachu ati gaṃbhīrā. prabhu prabhāu jānata matidhīrā..
When Laksmana saw Uma (Sati) in Her disguise, he was astonished and much puzzled. He was tongue-tied and looked very grave; the sagacious brother was acquainted with the Lord’s glory.