श्रीराम-स्तुति
श्रीराम-स्तुति
५०
देव-
भानुकुल-कमल-रवि, कोटि कंर्दप-छवि, काल-कलि-व्यालमिव वैनतेयं.
प्रबल भुजदंड परचंड-कोदंड-धर तूणवर विशिख बलमप्रमेयं ||१ ||
अरुण राजीवदल-नयन, सुषमा-अयन, श्याम तन-कांति वर वारिदाभं.
तत्प कांचन-वस्त्र, शस्त्र-विद्या-निपुण, सिद्ध-सुर-सेव्य, पाथोजनाभं ||2 ||
अखिल लावण्य-गृह, विश्व-विग्रह, परम प्रौढ, गुणगूढ़, महिमा उदारं.
दुर्धर्ष, दुस्तर, दुर्ग, स्वर्ग-अपवर्ग-पति, भग्न संसार-पादप कुठारं ||३ ||
शापवश मुनिवधू-मुक्तकृत, विप्रहित, यज्ञ-रक्षण-दक्ष, पक्षकर्ता.
जनक-नृप-सदसि शिवचाप-भंजन, उग्र भार्गवागर्व-गरिमापहर्ता ||४ ||
गुरु-गिरा-गौरवामर-सुदुस्त्यज राज्य त्यक्त, श्रीसहित सौमित्रि-भ्राता.
संग जनकात्मजा, मनुजमनुसृत्य अज, दुष्ट-वध-निरत, त्रैलोक्यत्राता ||५ ||
दंडकारण्य कृतपुण्य पावन चरण, हरण मारीच-मायाकुरंगं.
बालि बलमत्त गजराज इव केसरी, सुह्रद-सुग्रीव-दुख-राशि-भंगं ||६ ||
ऋक्ष, मर्कट विकट सुभट उभ्दट समर, शैल-संकाश रिपु त्रासकारी.
बद्धपाथोधि, सुर-निकर-मोचन, सकुल दलन दससीस-भुजबीस भारी ||७ ||
दुष्ट विबुधारि-संघात, अपहरण महि-भार, अवतार कारण अनूपं.
अमल, अनवद्य, अद्वैत, निर्गुण, सर्गुण, ब्रह्म सुमिरामि नरभूप-रूपं ||८ ||
शेष-श्रुति-शारदा-शंभु-नारद-सनक गनत गुन अंत नहीं तव चरित्रं.
सोइ राम कामारि-प्रिय अवधपति सर्वदा दासतुलसी-त्रास-निधि वहित्रं ||९ ||
५१
देव
जानकीनाथ, रघुनाथ, रागादि-तम-तरणि, तारुण्यतनु, तेजधामं.
सच्चिदानंद, आनंदकंदाकरं, विश्व-विश्राम, रामाभिरामं ||१ ||
नीलनव-वारिधर-सुभग-शुभकांति, कटि पीत कौशेय वर वसनधारी.
रत्न-हाटक-जटित-मुकुट-मंडित-मौलि, भानु-शत-सदृश उद्योतकारी ||२ ||
श्रवण कुंडल, भाल तिलक, भूरुचिर अति, अरुण अंभोज लोचन विशालं.
वक्र-अवलोक, त्रैलोक-शोकापहं, मार-रिपु-ह्रदय-मानस-मरालं ||३ ||
नासिका चारु सुकपोल, द्विज वज्रदुति, अधर बिंबोपमा, मधुरहासं.
कंठ दर, चिबुक वर, वचन गंभीरतर, सत्य-संकल्प, सुरत्रास-नासं ||४ ||
सुमन सुविचित्र नव तुलसिकादल-युतं मृदृल वनमाल उर भ्राजमानं.
भ्रमत आमोदवश मत्त मधुकर-निकर, मधुरतर मुखर कुर्वन्ति गानं ||५ ||
सुभग श्रीवत्स, केयूर, कंकण, हार, किंकणी-रटनि कटि-तट रसालं.
वाम दिसि जनकजासीन-सिंहासनं कनक-मृदुवल्लित तरु तमालं ||६ ||
आजानु भुजदंड कोदंड-मंडित वाम बाहु, दक्षिण पाणि बाणमेकं.
अखिल मुनि-निकर, सुर, सिद्ध, गंधर्व वर नमत नर नाग अवनिप अनेकं ||7 ||
अनघ अविछिन्न, सर्वज्ञ, सर्वेश, खलु सर्वतोभद्र-दाताऽसमाकं.
प्रणतजन-खेद-विच्छेद-विद्या-निपुण नौमि श्रीराम सौमित्रिसाकं ||८ ||
युगल पदपद्म, सुखसद्म पद्मालयं, चिन्ह कुलिशादि शोभाति भारी.
हनुमंत-ह्रदि विमल कृत परममंदिर, सदातुलसी-शरण शोकहारी ||
५२
देव-
कोशलाधीश, जगदीश, जगदेकहित, अमितगुण, विपुल विस्तार लीला.
गायंति तव चरित सुपवित्र श्रुति-शेष-शुक-शंभु-सनकादि मुनि मननशीला ||१ ||
वारिचर-वपुष धरि भक्त-निस्तारपर, धरणिकृत नाव महिमातिगुर्वी.
सकल यज्ञांशमय उग्र विग्रह क्रोड़, मर्दि दनुजेश उद्धरण उर्वी ||२ ||
कमठ अति विकट तनु कठिन पृष्ठोपरी, भ्रमत मंदर कंडु-सुख मुरारी.
प्रकटकृत अमृत, गो, इंदिरा, इंदु, वृंदारकावृंद-आनंदकारी ||३ ||
मनुज-मुनि-सिद्ध-सुर-नाग-त्रासक, दुष्ट दनुज द्विज-धर्म-मरजाद-हर्त्ता.
अतुल मृगराज-वपुधरित, विद्दरित अरि, भक्त प्रहलाद-अहलाद-कर्त्ता ||४ ||
छलन बलि कपट-वटुरूप वामन ब्रह्म, भुवन पर्यंत पद तीन करणं.
चरण-नख-नीर-त्रेलोक-पावन परम, विबुध-जननी-दुसह-शोक-हरणं ||५ ||
क्षत्रियाधीश-करिनिकर-नव-केसरी, परशुधर विप्र-सस-जलदरूपं.
बीस भुजदंड दससीस खंडन चंड वेग सायक नौमि राम भूपं ||६ ||
भूमिभर-भार-हर, प्रकट परमातमा, ब्रह्म नररूपधर भक्तहेतू.
वृष्णि-कुल-कुमुद-राकेश राधारमण, कंस-बंसाटवी-धूमकेतू ||७ ||
प्रबल पाखंड महि-मंडलाकुल देखि, निंद्यकृत अखिल मख कर्म-जालं.
शुद्ध बोधैकघन, ज्ञान-गुणधाम, अज बौद्ध-अवतार वंदे कृपालं ||८ ||
कालकलिजनित-मल-मलिनमन सर्व नर मोह निशि-निबिड़यवनांधकारं.
विष्णुयश पुत्र कलकी दिवाकर उदित दासतुलसी हरण विपतिभारं ||९ ||
५३
देव-
सकल सौभाग्यप्रद सर्वतोभद्र-निधि, सर्व, सर्वेश, सर्वाभिरामं.
शर्व-ह्रदि-कंज-मकरंद-मधुकर रुचिर-रूप, भूपालमणि नौमि रामं ||१ ||
सर्वसुख-धाम गुणग्राम, विश्रामपद, नाम सर्वसंपदमति पुनीतं.
निर्मलं शांत, सुविशुद्ध, बोधायतन, क्रोध-मद-हरण, करुणा-निकेतं ||२ ||
अजित, निरुपाधि, गोतीतमव्यक्त, विभुमेकमनवद्यमजमद्वितीयं.
प्राकृतं, प्रकट परमातमा, परमहित, प्रेरकानंत वंदे तुरीयं ||३ ||
भूधरं सुन्दरं, श्रीवरं, मदन-मद-मथन सौन्दर्य-सीमातिरम्यं.
दुष्प्राप्य, दुष्पेक्ष्य, दुस्तर्क्य, दुष्पार, संसारहर, सुलभ, मृदुभाव-गम्यं ||
सत्यकृत, सत्यरत, सत्यव्रत, सर्वदा, पुष्ट, संतुष्ट, संकष्टहारी.
धर्मवर्मनि ब्रह्मकर्मबोधैक, विप्रपूज्य, ब्रह्मण्यजनप्रिय, मुरारी ||५ ||
नित्य, निर्मम, नित्यमुक्त, निर्मान, हरि, ज्ञानघन, सच्चिदानंद मूलं.
सर्वरक्षक सर्वभक्षकाध्यक्ष, कूटस्थ, गूढार्चि, भक्तानुकूलं ||६ ||
सिद्ध-साधक-साध्य, वाच्य-वाचकरूप, मंत्र-जापक-जाप्य, सृष्टि-स्त्रष्टा.
परम कारण, कञ्ञनाभ, जलदाभतनु, सगुण, निर्गुण, सकल दृश्य-द्रष्टा ||७ ||
व्योम-व्यापक, विरज, ब्रह्म, वरदेश, वैकुंठ, वामन विमल ब्रह्मचारी.
सिद्ध-वृंदारकावृंदवंदित सदा, खंडि पाखंड-निर्मूलकारी ||८ ||
पूरनानंदसंदोह, अपहरन संमोह-अज्ञान, गुण-सन्निपातं.
बचन-मन-कर्म-गत शरण तुलसीदास त्रास-पाथोधि इव कुंभजातं ||९ ||
५४
देव-
विश्व-विख्यात, विश्वेश, विश्वायतन, विश्वमरजाद, व्यालारिगामी.
ब्रह्म, वरदेश, वागीश, व्यापक, विमल विपुल, बलवान, निर्वानस्वामी ||१ ||
प्रकृति, महतत्व, शब्दादि गुण, देवता व्योम, मरुदग्नि, अमलांबु, उर्वी.
बुद्धि, मन, इंद्रिय, प्राण, चित्तातमा, काल, परमाणु, चिच्छक्ति गुर्वी ||२ ||
सर्वमेवात्र त्वद्रूप भूपालमणि! व्यक्तमव्यक्त, गतभेद, विष्णो.
भुवन भवदंग, कामारि-वंदित, पदद्वंद्व मंदाकिनी-जनक, जिष्णो ||३ ||
आदिमध्यांत, भगवंत! त्वं सर्वगतमीश, पश्यन्ति ये ब्रह्मवादी.
यथा पट-तंतु, घट-मृतिका, सर्प-स्त्रग, दारुकरि, कनक-कटकांगदादी ||४ ||
गूढ़, गंभीर, गर्वघ्न, गूढार्थवित, गुप्त, गोतीत, गुरु, ग्यान-ग्याता.
ग्येय, ग्यानप्रिय, प्रचुर गरिमागार, घोर-संसार-पर, पार दाता ||५ ||
सत्यसंकल्प, अतिकल्प, कल्पांतकृत, कल्पनातीत, अहि-तल्पवासी.
वनज-लोचन, वनज-नाभ, वनदाभ-वपु, वनचरध्वज-कोटि-लावण्यरासी ||६ ||
सुकर, दुःकर, दुराराध्य, दुर्व्यसनहर, दुर्ग, दुर्द्धर्ष, दुर्गार्त्तिहर्त्ता.
वेदगर्भार्भकादर्भ-गुनगर्व, अर्वांगपर-गर्व-निर्वाप-कर्त्ता ||७ ||
भक्त-अनुकूल, भवशूल-निर्मूलकर, तूल-अघ-नाम पावक-समानं.
तरलतृष्णा-तमी-तरणि, धरणीधरण, शरण-भयहरण, करुणानिधानं ||८ ||
बहुल वृंदारकावृंद-वंदारु-पद-द्वंद्व मंदार-मालोर-धारी.
पाहि मामीश संताप-संकुल सदा दास तुलसी प्रणत रावणारी ||९ ||
५५
देव-
संत-संतापहर, विश्व-विश्रामकर, रामकामारि, अभिरामकारी.
शुद्ध बोधायतन, सच्चिदानंदघन, सज्जनानंद-वर्धन, खरारी ||१ ||
शील-समता-भवन, विषमता-मति-शमन, राम, रमारमन, रावनारी.
खड्ग, कर चर्मवर, वर्मधर, रुचिरल कटि तूण, शर-शक्ति-सारंगधारी ||२ ||
सत्यसंधान, निर्वानप्रद, सर्वहित, सर्वगुण-ज्ञान-विज्ञानशाली.
सघन-तम-घोर-संसार-भर-शर्वरी नाम दिवसेष खर-किरणमाली ||३ ||
तपन तीच्छन तरुन तीव्र तापघ्न, तपरूप, तनभूप, तमपर, तपस्वी.
मान-मद-मदन-मत्सर-मनोरथ-मथन, मोह-अंभोधि-मंदर, मनस्वी ||४ ||
वेद विख्यात, वरदेश, वामन, विरज, विमल, वागीश, वैकुंठस्वामी.
काम-क्रोधादिमर्दन, विवर्धन, छमा-शांति-विग्रह, विहगराज-गामी ||५ ||
परम पावन, पाप-पुंज-मुंजावटी-अनल इव निमिष निर्मूलकर्त्ता.
भुवन-भूषण, दूषणारि-भुवनेश, भूनाथ, श्रुतिमाथ जय भुवनभर्ता ||६ ||
अमल, अविचल, अकल, सकल, संतप्त-कलि-विकलता-भंजनानंदरासी.
उरगनायक-शयन, तरुणपंकज-नयन, छीरसागर-अयन, सर्ववासी ||७ ||
सिद्ध-कवि-कोविकानंद-दायक पदद्वंद्व मंदात्ममनुजैर्दुरापं.
यत्र संभूत अतिपूत जल सुरसरी दर्शनादेव अपहरति पापं ||८ ||
नित्य निर्मुक्त, संयुक्तगुण, निर्गुणानंद, भगवंत, न्यामक, नियंता.
विश्व-पोषण-भरण, विश्व-कारण-करण, शरण तुलसीदास त्रास-हंता ||९ ||
५६
देव-
दनुजसूदन दयासिंधु, दंभापहन दहन दुर्दोष, दर्पापहर्त्ता.
दुष्टतादमन, दमभवन, दुःखौघहर दुर्ग दुर्वासना नाश कर्त्ता ||१ ||
भूरिभूषण, भानुमंत, भगवंत, भवभंजनाभयद, भुवनेश भारी.
भावनातीत, भववंद्य, भवभक्तहित, भूमिउद्धरण, भूधरण-धारी ||२ ||
वरद, वनदाभ, वागीश, विश्वात्मा, विरज, वैकुण्ठ-मन्दिर-विहारी.
व्यापक व्योम, वंदारु, वामन, विभो, ब्रह्मविद, ब्रह्म, चिंतापहारी ||३ ||
सहज सुन्दर, सुमुख, सुमन, शुभ सर्वदा, शुद्धसर्वज्ञ, स्वछन्दचारी.
सर्वकृत, सर्वभृत, सर्वजित, सर्वहित, सत्य-संकल्प, कल्पांतकारी ||४ ||
नित्य, निर्मोह, निर्गुण, निरंजन, निजानंद, निर्वाण, निर्वाणदाता.
निर्भरानंद, निःकंप, निःसीम, निर्मुक्त, निरुपाधि, निर्मम, विधाता ||५ ||
महामंगलमूल, मोद-महिमायतन, मुग्ध-मधु-मथन, मानद, अमानी.
मदनमर्दन, मदातीत, मायारहित, मंजु मानाथ, पाथोजपानी ||६ ||
कमल-लोचन, कलाकोश, कोदंडधर, कोशलाधीश, कल्याणराशी.
यातुधान प्रचुर मत्तकरि-केसरी, भक्तमन-पुण्य-आरण्यवासी ||७ ||
अनघ, अद्वैत, अनवद्य, अव्यक्त, अज, अमित अविकार, आनंदसिंधो.
अचल, अनिकेत, अविरल, अनामय, अनारंभ, अंभोदनादहन-बंधो ||८ ||
दासतुलसी खेदखिन्न, आपन्न इह, शोकसंपन्न अतिशय सभीतं.
प्रणतपालक राम, परम करुणाधाम, पाहि मामुर्विपति, दुर्विनीतं ||९ ||