श्रीसीता स्तुति
श्रीसीता-स्तुति
राग केदारा
४१
कबहुँक अम्ब, अवसर पाइ।
मेरिऔ सुधि द्याइबी,कछु करुन-कथा चलाइ ॥ १ ॥
दीन, सब अँगहीन,छीन,मलीन,अघी अघाइ।
नाम लै भरै उदर एक प्रभु-दासी-दास कहाइ ॥ २ ॥
बूझिहैं ‘सो है कोन’, कहिबी नाम दसा जनाइ।
सुनत राम कृपालुके मेरी बिगरीऔ बनि जाइ ॥ ३ ॥
जानकी जगजननि जनकी किये बचन सहाइ।
तरै तुलसीदास भव तव नाथ-गुन-गन गाइ ॥ ४ ॥
४२
कबहुँ समय सुधि द्ययाबी,मेरी मातु जानकी।
जन कहाइ नाम लेत हौं,किये पन चातक ज्यों,प्यास-प्रेम-पानकी ॥ १ ॥
सरल कहाई प्रकृति आपु जानिए करुना-निधानकी।
निजगुन,अरिकृत अनहितौ,दास-दोष सुरति चित रहत न दिये दानकी ॥
बानि बिसारनसील है मानद अमानकी।
तुलसीदास न बिसारिये,मन करम बचन जाके,सपनेहुँ गति न आनकी ॥