श्री विन्दुमाधव स्तुति
श्री विन्दुमाधव स्तुति
६१
देव–
सकल सुखकंद, आनंदवन-पुण्यकृत,बिंदुमाधव द्वंद्व-विपतिहारी।
यस्यांघ्रिपाथोज अज-शंभु-सनकादि-शुक-शेष-मुनिवृंद-अलि-निलयकारी ॥ १ ॥
अमल मरकत श्याम,काम शतकोटि छवि,पीतपट तड़ित इव जलदनीलं।
अरुण शतपत्र लोचन,विलोकनि चारू,प्रणतजन-सुखद,करुणार्द्रशीलं ॥ २ ॥
काल-गजराज-मृगराज,दनुजेश-वन-दहन पावक,मोह-निशि-दिनेशं।
चारिभुज चक्र-कौमोदकी-जलज-दर, सरसिजोपरि यथा राजहंस ॥ ३ ॥
मुकुट,कुंडल,तिलक,अलक अलिव्रातइव,भृकुटि,द्विज,अधरवर,चारुनासा।
रुचिर सुकपोल,दर ग्रीव सुखसीव,हरि,इंदुकर-कुंदमिव मधुरहासा ॥ ४ ॥
उरसि वनमाल सुविशाल नवमंजरी, भ्राज श्रीवत्स-लांछन उदारं।
परम ब्रह्मन्य,अतिधन्य,गतमन्यु,अज,अमितबल,विपुल महिमा अपारं ॥ ५ ॥
हार-केयूर,कर कनक कंकन रतन-जटित मणि-मेखला कटिप्रदेशं।
युगल पद नूपुरामुखर कलहंसवत, सुभग सर्वांग सौन्दर्य वेशं ॥ ६ ॥
सकल सौभाग्य-संयुक्त त्रेलोक्य-श्री दक्षि दिशि रुचिर वारीश-कन्या।
बसत विबुधापगा निकट तट सदनवर, नयन निरखंति नर तेऽति धन्या ॥ ७ ॥
अखिल मंगल-भवन,निबिड़ संशय-शमन दमन-वृजिनाटवी,कष्टहर्त्ता।
विश्वधृत,विश्वहित,अजित,गोतीत,शिव,विश्वपालन,हरण,विश्वकर्त्ता ॥ ८ ॥
ज्ञान-विज्ञान-वैराग्य-ऐश्वर्य-निधि,सिद्धि अणिमादि दे भूरिदानं।
ग्रसित-भव-व्याल अतित्रास तुलसीदास,त्राहि श्रीराम उरगारि-यानं ॥ ९ ॥
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इहै परम फलु,परम बड़ाई।
नखसिख रुचिर बिंदुमाधव छबि निरखहिं नयन अघाई ॥ १ ॥
बिसद किसोर पीन सुंदर बपु,श्याम सुरुचि अधिकाई।
नीलकंज,बारिद,तमाल,मनि,इन्ह तनुते दुति पाई ॥ २ ॥
मृदुल चरन शुभ चिन्ह,पदज,नख अति अभूत उपमाई।
अरुन नील पाथोज प्रसव जनु, मनिजुत दल-समुदाई ॥ ३ ॥
जातरूप मनि-जटित-मनोहर, नूपुर जन-सुखदाई।
जनु हर-उर हरि बिबिध रूप धरि, रहे बर भवन बनाई ॥ ४ ॥
कटितट रटति चारु किंकिनि-रव,अनुपम,बरनि न जाई।
हेम जलज कल कलित मध्य जनु,मधुकर मुखर सुहाई ॥ ५ ॥
उर बिसाल भृगुचरन चारु अति,सूचत कोमलताई।
कंकन चारु बिबिध भूषन बिधि,रचि निज कर मन लाई ॥ ६ ॥
गज-मनिमाल बीच भ्राजत कहि जाति न पदक निकाई।
जनु उडुगन-मंडल बारिदपर,नवग्रह रची अथाई ॥ ७ ॥
भुजगभोग-भुजदंड कंज दर चक्र गदा बनि आई।
सोभासीव ग्रीव,चिबुकाधर,बदन अमित छबि छाई ॥ ८ ॥
कुलिस,कुंद-कुडमल,दामिनि-दुति,दसनन देखि लजाई।
नासा-नयन-कपोल,ललित श्रुति कुंडल भ्रू मोहि भाई ॥ ९ ॥
कुंचित कच सिर मुकुट,भाल पर,तिलक कहौं समुझाई।
अलप तड़ित जुग रेख इंदु महँ,रहि तजि चंचलताई ॥ १० ॥
निरमल पीत दुकुल अनूपम,उपमा हिय न समाई।
बहु मनिजुत गिरि नील सिखरपर कनक-बसन रुचिराई ॥ ११ ॥
दच्छ भाग अनुराग-सहित इंदिरा अधिक ललिताई।
हेमलता जनु तरु तमाल ढिग,नील निचोल ओढ़ाई ॥ १२ ॥
सत सारदा सेष श्रुति मिलिकै,सोभा कहि न सिराई।
तुलसिदास मतिमंद द्वंदरत कहै कौन बिधि गाई ॥ १३ ॥
राग जैतश्री
६३
मन इतनोई या तनुको परम फलु।
सब अँग सुभग बिंदुमाधव-छबि,तजि सुभाव,अवलोकु एक पलु ॥ १ ॥
तरुन अरुन अंभोज चरन मृदु,नख-दुति ह्रदय-तिमिर-हारी।
कुलिस-केतु-जव-जलज रेख बर,अंकुस मन-गज-बसकारी ॥ २ ॥
कनक-जटित मनि नूपुर,मेखल,कटि-तट रटति मधुर बानी।
त्रिबली उदर,गँभीर नाभि सर,जहँ उपजे बिरंचि ग्यानी ॥ ३ ॥
उर बनमाल,पदिक अति सोभित,बिप्र-चरन चित कहँ करषै।
स्याम तामरस-दाम-बरन बपु पीत बसन सोभा बरषै ॥ ४ ॥
कर कंकन केयूर मनोहर,देति मोद मुद्रिक न्यारी।
गदा कंज दर चारु चक्रधर,नाग-सुंड-सम भुज चारी ॥ ५ ॥
कंबुग्रीव,छबिसीव चिबुक द्विज,अधर अरुन,उन्नत नासा।
नव राजीव नयन,ससि आनन,सेवक-सुखद बिसद हासा ॥ ६ ॥
रुचिर कपोल,श्रवन कुंडल,सिर मुकुट,सुतिलक भाल भ्राजै।
ललित भृकुटि,सुंदर चितवनि,कच निरखि मधुप-अवली लाजे ॥ ७ ॥
रूप-सील-गुन-खानि दच्छ दिसि,सिंधु-सुता रत-पद-सेवा।
जाकी कृपा-कटाच्छ चहत सिव,बिधि,मुनि,मनुज,दनुज,देवा ॥ ८ ॥
तुलसिदास भव-त्रास मिटै तब,जब मति येहि सरूप अटकै।
नाहिंत दीन मलीन हीनसुख,कोटि जनम भ्रमि भ्रमि भटकै ॥ ९ ॥