हरिशंकरी पद
हरिशंकरी पद
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देव-
दनुज-बन-दहन, गुन-गहन, गोविंद नंदादि-आनंद-दाताऽविनाशी.
शंभु, शिव, रुद्र, शंकर, भयंकर, भीम, घोर, तेजायतन, क्रोध-राशी ||१ ||
अनँत, भगवंत-जगदंत-अंतक-त्रास-शमन, श्रीरमन, भुवनाभिरामं.
भूधराधीश जगदीश ईशान, विज्ञानघन, ज्ञान-कल्यान-धामं ||२ ||
वामनाव्यक्त, पावन, परावर, विभो, प्रकट परमातमा, प्रकृति-स्वामी.
चंद्रशेखर, शूलपाणि, हर, अनघ, अज, अमित, अविछिन्न, वृशभेश-गामी ||३ ||
नीलजलदाभ तनु श्याम, बहु काम छवि राम राजीवलोचन कृपाला.
कबुं-कर्पूर-वपु धवल, निर्मल मौलि जटा, सुर-तटिनि, सित सुमन माला ||४ ||
वसन किंजल्कधर, चक्र-सारंग-दर-कंज-कौमोदकी अति विशाला.
मार-करि-मत्त-मृगराज, त्रैनैन, हर, नौमि अपहरण संसार-जाला ||५ ||
कृष्ण, करुणाभवन, दवन कालीय खल, विपुल कंसादि निर्वशकारी.
त्रिपुर-मद-भंगकर, मत्तगज-चर्मधर, अन्धकोरग-ग्रसन पन्नगारी ||६ ||
ब्रह्म, व्यापक, अकल, सकल, पर, परमहित, ग्यान, गोतीत, गुण-वृत्ति-हर्त्ता.
सिंधुसुत-गर्व-गिरि-वज्र, गौरीश, भव दक्ष-मख अखिल विध्वंसकर्त्ता ||७ ||
भक्तिप्रिय, भक्तजन-कामधुक धेनु, हरि हरण दुर्घट विकट विपति भारी.
सुखद, नर्मद, वरद, विरज, अनवघ्यऽखिल, विपिन-आनंद-वीथिन-विहारी
रुचिर हरिशंकरी नाम-मंत्रावली द्वंद्वदुख हरनि, आनंदखानी.
विष्णु-शिव-लोक-सोपान-सम सर्वदा वदति तुलसीदास विशद बानी ||८ ||