श्रीनर नारायण स्तुति
श्रीनर नारायण स्तुति
६०
देव–
नौमि नारायणं नरं करुणायनं, ध्यान-पारायणं,ज्ञान-मूलं।
अखिल संसार-उपकार-कारण, सदयह्रदय,तपनिरत,प्रणतानुकूलं ॥ १ ॥
श्याम नव तामरस-दामद्युति वपुष, छवि कोटि मदनार्क अगणित प्रकाशं।
तरुण रमणीय राजीव-लोचन ललित, वदन राकेश,कर-निकस-हासं ॥ २ ॥
सकल सौंदर्य-निधि,विपुल गुणधाम, विधि-वेद-बुध-शंभु-सेवित,अमानं।
अरुण पदकंज-मकरंद मंदाकिनी मधुप-मुनिवृंद कुर्वन्ति पानं ॥ ३ ॥
शक्र-प्रेरित घोर मदन मद-भृगंकृत, क्रोधगत,बोधरत,ब्रह्मचारी।
मार्केण्डय मुनिवर्यहित कौतुकी बिनहि कल्पांत प्रभु प्रलयकारी ॥ ४ ॥
पुण्य वन शैलसरि बद्रिकाश्रम सदासीन पद्मासनं,एक रूपं।
सिद्ध-योगीन्द्र-वृंदारकानंदप्रद,भद्रदायक दरस अति अनूपं ॥ ५ ॥
मान मनभंग,चितभंग,मद,क्रोधा लोभादि पर्वतदुर्ग,भुवन-भर्त्ता।
द्वेष-मत्सर-राग प्रबल प्रत्यूह प्रति,भूरि निर्दय,क्रूर कर्म कर्त्ता ॥ ६ ॥
विकटतर वक्र क्षुरधार प्रमदा,तीव्र दर्प कंदर्प खर खड्गधारा।
धीर-गंभीर-मन-पीर-कारक,तत्र के वराका वयं विगतसारा ॥ ७ ॥
परम दुर्घट पथं खल-असंगत साथ,नाथ! नहिं हाथ वर विरति-यष्टी।
दर्शनारत दास,त्रसित माया-पाश,त्राहि हरि,त्राहि हरि,दास कष्टी ॥ ८ ॥
दासतुलसी दीन धर्म-संबलहीन,श्रमित अति,खेद,मति मोह नाशी।
देहि अवलंब न विलंब अंभोज-कर,चक्रधर-तेजबल शर्मराशी ॥ ९ ॥