श्री रामनाम वन्दना
श्री रामनाम वन्दना
राग रामकली
४६
सदा
राम जपु,राम जपु,राम जपु, राम जपु, राम जपु, मूढंअन बार बारं।
सकल सौभाग्य-सुख-खानि जिय जानि शठ,मानि विश्वास वद वेदसारं ॥
कोशलेन्द्र नव-नीलकञ्जाभतनु,मदन-रिपु-कञ्जह्रदि-चञ्चरीकं।
जानकीरवन सुखभवन भुवनैकप्रभु,समर-भञ्जन,परम कारुनीकं ॥ २ ॥
दनुज-वन धूमधुज,पीन आजानुभुज,दण्ड-कोदण्डवर चण्ड बानं।
अरुनकर चरण मुख नयन राजीव,गुन-अयन,बहु मयन-शोभा-निधानं ॥ ३ ॥
वासनावृन्द-कैरव-दिवाकर, काम-क्रोध-मद कञ्ज-कानन-तुषारं।
लोभ अति मत्त नागेन्द्र पञ्चानन भक्तहित हरण संसार-भारं ॥ ४ ॥
केशवं,क्लेशहं,केश-वन्दित पद-द्वन्द्व मन्दाकिनी-मूलभूतं।
सर्वदानन्द-सन्दोह,मोहापहं, घोर-संसार-पाथोधि-पोतं ॥ ५ ॥
शोक-सन्देह-पाथोदपटलानिलं, पाप-पर्वत-कठिन-कुलिशरूपं।
सन्तजन-कामधुक-धेनु,विश्रामप्रद, नाम कलि-कलुष-भञ्जन अनूपं ॥ ६ ॥
धर्म-कल्पद्रुमाराम, हरिधाम-पथि सम्बलं, मूलमिदमेव एकं।
भक्ति-वैराग्यं विज्ञान-शम-दान-दम, नाम आधीन साधन अनेकं ॥ ७ ॥
तेन तप्तं,हुतं,दत्तमेवाखिलं, तेन सर्व कृतं कर्मजालं।
येन श्रीरामनामामृतं पानकृतमनिशमनवद्यमवलोक्य कालं ॥ ८ ॥
श्वपच,खल,भिल्ल,यवनादि हरिलोकगत, नामबल विपुल मति मल न परसी।
त्यागि सब आस,सन्त्रास,भवपास असि निसित हरिनाम जपु दासतुलसी ॥