संभु दीन्ह उपदेस हित नहिं नारदहि सोहान। भरद्वाज कौतुक सुनहु हरि इच्छा बलवान॥127॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kand
संभु दीन्ह उपदेस हित नहिं नारदहि सोहान।
भरद्वाज कौतुक सुनहु हरि इच्छा बलवान॥127॥
भावार्थ:
यद्यपि शिवजी ने यह हित की शिक्षा दी, पर नारदजी को वह अच्छी न लगी। हे भरद्वाज! अब कौतुक (तमाशा) सुनो। हरि की इच्छा बड़ी बलवान है॥127॥
English :
IAST :
Meaning :