सतीं सो दसा संभु कै देखी। उर उपजा संदेहु बिसेषी॥ संकरु जगतबंद्य जगदीसा। सुर नर मुनि सब नावत सीसा॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 49.3 | Caupāī 49.3
सतीं सो दसा संभु कै देखी। उर उपजा संदेहु बिसेषी॥
संकरु जगतबंद्य जगदीसा। सुर नर मुनि सब नावत सीसा॥3॥
भावार्थ:-सतीजी ने शंकरजी की वह दशा देखी तो उनके मन में बड़ा संदेह उत्पन्न हो गया। (वे मन ही मन कहने लगीं कि) शंकरजी की सारा जगत् वंदना करता है, वे जगत् के ईश्वर हैं, देवता, मनुष्य, मुनि सब उनके प्रति सिर नवाते हैं॥3॥
satīṃ sō dasā saṃbhu kai dēkhī. ura upajā saṃdēhu bisēṣī..
saṃkaru jagatabaṃdya jagadīsā. sura nara muni saba nāvata sīsā..
When Sats beheld Sambhu in this state, a grave doubt arose in Her mind: “Sarkara is a Lord of the universe Himself, and deserves universal adoration; gods, men and sages all bow their head to Him.