सर पैठत कपि पद गहा मकरीं तब अकुलान। मारी सो धरि दिब्य तनु चली गगन चढ़ि जान॥57॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
षष्ठः सोपानः | Descent 6th
श्री लंकाकाण्ड | Shri Lanka Kand
दोहा :
सर पैठत कपि पद गहा मकरीं तब अकुलान।
मारी सो धरि दिब्य तनु चली गगन चढ़ि जान॥57॥
भावार्थ:
तालाब में प्रवेश करते ही एक मगरी ने अकुलाकर उसी समय हनुमान्जी का पैर पकड़ लिया। हनुमान्जी ने उसे मार डाला। तब वह दिव्य देह धारण करके विमान पर चढ़कर आकाश को चली॥57॥
English :
IAST :
Meaning :