साचेहुँ उन्ह कें मोह न माया। उदासीन धनु धामु न जाया॥ sachehum unha kem moha na maya| udasina dhanu dhamu na jaya||
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई (96.2)| Caupāī (96.2)
साचेहुँ उन्ह कें मोह न माया। उदासीन धनु धामु न जाया॥
पर घर घालक लाज न भीरा। बाँझ कि जान प्रसव कै पीरा॥2॥
भावार्थ:
सचमुच उनके न किसी का मोह है, न माया, न उनके धन है, न घर है और न स्त्री ही है, वे सबसे उदासीन हैं। इसी से वे दूसरे का घर उजाड़ने वाले हैं। उन्हें न किसी की लाज है, न डर है। भला, बाँझ स्त्री प्रसव की पीड़ा को क्या जाने॥2॥
English:
sachehum unha kem moha na maya| udasina dhanu dhamu na jaya||
para ghara ghalaka laja na bhira| banja ki jana prasava kai pira||2||
IAST:
sācēhuom unha kē mōha na māyā. udāsīna dhanu dhāmu na jāyā..
para ghara ghālaka lāja na bhīrā. bājhaom ki jāna prasava kaiṃ pīrā..
Meaning:
In good sooth the sage is passionless and without affection; he has no wealth, no dwelling and no wife and is indifferent to all. That is why he destroys others’ homes. He has neither shame nor fear. What does a barren woman know of the pains of childbirth?”