सिय निंदक अघ ओघ नसाए। लोक बिसोक बनाइ बसाए॥ बंदउँ कौसल्या दिसि प्राची। कीरति जासु सकल जग माची॥2॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 15.2| Caupai 15.2
सिय निंदक अघ ओघ नसाए। लोक बिसोक बनाइ बसाए॥
बंदउँ कौसल्या दिसि प्राची। कीरति जासु सकल जग माची॥2॥
भावार्थ:-उन्होंने (अपनी पुरी में रहने वाले) सीताजी की निंदा करने वाले (धोबी और उसके समर्थक पुर-नर-नारियों) के पाप समूह को नाश कर उनको शोकरहित बनाकर अपने लोक (धाम) में बसा दिया। मैं कौशल्या रूपी पूर्व दिशा की वन्दना करता हूँ, जिसकी कीर्ति समस्त संसार में फैल रही है॥2॥
siya niṃdaka agha ōgha nasāē. lōka bisōka banāi basāē..
baṃdauom kausalyā disi prācī. kīrati jāsu sakala jaga mācī..
Even though they were damned as a result of the heap of sins incurred by the calumniators of Sita (who were instrumental in bringing about Her lifelong exile), they were lodged in a heavenly abode, having been divested of sorrow. I greet Kausalya (the eldest queen of king Dasaratha) whose glory stands diffused throughout the world.